Basant Panchami Significance and Celebration

Shree Krishna Janmashtami aur Pauranik Kathayen

 

shree krishna

श्री कृष्ण जन्माष्टमी


श्री कृष्ण जन्माष्टमी इस बार 19 अगस्त 2022 को है, यह संपूर्ण भारत देश में मनाया जाने वाला पर्व है जो की काफी ज्यादा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।  लोगों में काफी ज्यादा ख़ुशी होती है, लोग इस दिन उपवास भी रखते है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी मानाने का मुख्य कारण

श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाये जाने का मुख्य कारण ये है की इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उस दिन रोहिणी नक्षत्र और अर्धरात्रि का समय था, इसी समय में भगवान श्री कृष्ण ने देवकी जी के गर्भ से जन्म लिया, ये देवकी और वसुदेव की आठवीं संतान थ। इनका जन्म कंस की कारागार में हुआ था, कंस जो की श्री कृष्ण का मामा था वह इतना दुष्ट एवं दुराचारी था की, एकबार आकाशवाणी हुयी की तेरी बहन देवकी की आठवीं संतान तेरा काल बनेगी तब से कंस ने वसुदेव और देवकी को कारागार में बंदी बनाके रख लिया और जैसे जैसे संताने होती गयी उन नन्हे जन्मे शिशुओं को कंस अपने हाथो से मरता गया परन्तु जब आठवीं संतान हुयी तो चमत्कार हो गया जेल के सभी सिपाही सो गए वसुदेव की बेड़िया खुल गयी जेल के सभी ताले एवं द्वार खुल गए की तभी वसुदेव ने श्री कृष्णा को लेके नन्द और यशोदा के घर गोकुल गांव में छोड़ आये और यशोदा जी की कन्या को वहां से अपने साथ लेके आगये फिर उसके बाद जैसे ही कारागार में प्रवेश किया अपने आप ही सारे द्वार बंद हो गए संत्री और सिपाही जाग गए और कन्या का रुदन प्रारम्भ हो गया, कंस को सिपाही द्वारा सूचन मिली की वसुदेव और देवकी की अगली संतान पैदा हुयी है, यह समाचार मिलते है कंस आया और वसुदेव के हाथ से कन्या को छुड़ा लिया और जैसे ही उसे मरने की कोशिश की वैसे ही वो हाथ से छूटकर ऊपर की ओर गयी और देवी का रूप धारण करके प्रकट हुयी और कहा की तुझे मरने वाला पैदा हो चुका है, इसके बाद वो वहां से चली गयी। 

जानिए श्री कृष्ण जीवन का उद्देश्य 

श्री कृष्ण, भगवान विष्णु के अवतार है और सभी कलाओ में महारथी, अगर एक शब्द में कहे तो पूर्ण है।  पर क्या आवश्यकता थी की भगवान को धरती पर मानव रूप में अवतरित होना पड़ा, तो इसका सबसे सटीक उत्तर ये होगा की श्री कृष्ण ने स्वयं एक श्लोक में कहा है की 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ 

जब जब इस धरती पर धर्म की हानि होगी और अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए इस धरती पर जन्म लूंगा। 

श्री कृष्णा के जीवन का मुख्य उद्देश्य प्राणी मात्र का कल्याण करना था, जीवन के प्रत्येक कण में और इस जगत में संतुलन स्थापित करना था और ये सब कृष्णा ने अपने जीवन में इस तरह से किया की वो सब आज भी हम सब के साथ है, श्री कृष्ण के जीवन की प्रत्येक कथाये  हमें जीवन जीने का तरीका और उद्देश्य बताती है, साथ ही उनके द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द हमारे साथ में है जिससे हमें मार्ग दर्शन मिलता है। इसकी क्रम में आगे श्री कृष्णा के जीवन की कुछ कथाएं है। 

जानिए श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी शिक्षाप्रद रोचक कथाये 


श्री कृष्ण नारायण के अवतार और ब्रम्हांड की असीम शक्तियों के स्वामी थे परन्तु उन्होंने सदैव कर्म पर जोर दिया और लोगो को कर्म करने की ओर अग्रसर किया। श्री कृष्ण के जीवन के कुछ अंश 

यमुना नदी का कालिया नाग और श्री कृष्ण का युद्ध     


एकबार की बात है यमुना नदी के तट पर सभी ग्वाल और श्री कृष्ण गेंद से खेल रहे थे, एवं उस नदी में कही से सर्प आ गया जिसका नाम कालिया था, उस नदी का काफी बड़ा सर्प था जो की कई फन वाला था और काफी जहरीला जिसके फुसकार मारने से ही जल और वायु प्रभावित हो रहे थे और पर कान्हा और उनके मित्र खेल में व्यस्त थे की तभी गेंद नदी में चली गयी एक मित्र गेंद लेने गया तो जल में जहर के प्रभाव से आगे नहीं जा पाय। कान्हा गेंद लेने गए तो देखा की नदी में जहर का प्रभाव है और ये नदी की गहराई में सर्प के कारण से हुआ है वो नदी के अंदर चले गए जहाँ पर उस नाग के साथ युद्ध हुआ जहाँ कान्हा ने उस नाग को परास्त कर दिया और उसके फन पर बांसुरी बजाते हुए बहार आये। एवं उसे कही और दूर समुद्र में वस् करने को कहा। इस तरह से कृष्ण ने अपने गांव, अपने मित्रो को बचाया।     

श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता 

जब कभी भी मित्रता की बात आती है तो श्री कृष्ण और सुदामा का नाम अवश्य आता है। सुदामा जब श्री कृष्ण से मिलाने आये तब श्री कृष्ण के लिए कुछ चावल लाये थे सुदामा वो छुपा रहे थे, पर श्री कृष्ण को पता चल गया की सुदामा पोटली छुपा रहे है और कृष्ण ने छिना लिया।  श्री कृष्ण ने दो मुट्ठी चावल में दो लोक अपने मित्र सुदामा को दे दिए जैसे ही कृष्ण तीसरी मुट्ठी खाने वाले थे की रुक्मणी जी जो की कृष्ण की पत्नी थी उन्होंने कृष्ण का हाथ पकड़ लिया और श्री कृष्ण को तीसरी मुट्ठी चावल नहीं खाने दिया।  

महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को सीख 


महाभारत के युद्धः में भागवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान दिया और ये समझाया की धर्म और अधर्म की लड़ाई में अपने और पराये नही  देखे जाते अगर  सामने वाला अधर्मी है तो उसका मिटाना आवश्यक होता है। 


|| राधे राधे ||

Comments